बच्चों का संसार / शम्भुनाथ तिवारी
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता!
बच्चे अगर नहीं होते तो,
घर-घर में वीरानी होती।
दिल सबका छू लेनेवाली,
नहीं तोतली बानी होती।
गली-गली में खेल-खिलौनों,
का, भी कारोबार न होता।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता!
बात-बात में तुनकमिजाजी,
जिद्द-शरारत करता कौन?
बातें मनवाने की खातिर,
घर वालों से लड़ता कौन?
धक्का-मुक्की,मानमनौवल,
झूठमूठ मनुहार न होता।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता!
माँ की चोटी खींचखींचकर,
दिनभर उसे सताता कौन?
दादी का चश्मा,दादा की,
छतरी-छड़ी छुपाता कौन?
उन दोनों की लाठी बनने –
को कोई तैयार न होता।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता!
अपनी बालकलाओं से गर,
कान्हा जग को नहीं रिझाते।
तो शायद ही सूरदास जी,
वात्सल्य –सम्म्राट कहाते।।
छेड़ सके जो तान सुरीली,
वीणा में वह तार न होता।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता!
बच्चों की नटखट लीलाएँ,
जिद्द-शरारत लगतीं प्यारी।
बिन बच्चों के कैसी दुनिया,
जहाँ नहीं उनकी किलकारी।
स्वर्ग-सरीखा सुंदर धरती-
का, सपना साकार न होता।
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता!