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बच्चों की तरह / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
हम मिले
जैसे मिलते हैं
दो बच्चे
बातें कीं
दोस्ती की
रूठते-मनाते खुश रहे
हमने कुछ नहीं देखा
सुना
जाना
एक –दूसरे के सिवा
शिशिर की चाँदनी –रात
जैसा था हमारा मन
पर धीरे-धीरे
तुम्हारा मन कुहरे से घिर गया
हम सब कुछ माप -तौल कर करने लगे
अब हम नहीं मिलते
जैसे मिलते हैं बच्चे