भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चों की दुनिया / रश्मि रेखा
Kavita Kosh से
अपने समय में ज़िन्दगी की ख़ुशबू भरते
मगन हैं अपनी दुनिया में बच्चे
जिसे दशकों पीछे छोड़ आये हैं हम
चित्रों में उतर रहीं हैं परी-कथाऍ
नृत्य की लय में जीवन का संगीत
पतंग के साथ उड़ रहें है आकाश में
अनंत दिशाओं में इनके अनंत सपने
खुशियों के पुल बाँधते
खुली किताब की सीढ़ी-दर-सीढ़ी चद्गते
वे आश्वस्त हैं
कि एक दिन अवश्य छू लेंगे सूरज को
इधर मै सोच रही हूँ
मेरे डैनों के बाहर जब ये जायेंगें
इनके लिए दुनिया क्या ऐसी ही रहेगी