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बच्चों ने चहचहाना सीख लिया है / प्रताप सहगल

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गोल-मटोल से हो गए हैं
कबूतरी के बच्चे
और
अपनी-अपनी चोंचें खोलकर
वे अपने अस्तित्व को
बचाना सीख गए हैं
नहीं जानते बच्चे कि
यह दुनिया बहेलियों से भरी हुई है
नहीं जानते बच्चे कि
यहाँ कव्वे हैं
और बिल्लियाँ भी
नहीं जानते बच्चे अभी
कि
यहाँ उड़ान भरने से पहले
बहुत तैयारी की ज़रूरत होती है
नहीं जानते बच्चे
कि
यहाँ एक-एक दाने के लिए
संघर्ष करना पड़ता है
तमाम कबूतरों को।
क्या मैं यह तमाम बातें
पास जाकर
उनके कान में बताऊँ
जाने दीजिए
माँ है न उनके पास
वह उन्हें सिखाएगी
उनकी ज़िंदगी की पहली उड़ान
और
वह सिखाएगी उन्हें
कि
संघर्ष के रास्ते पर
कैसे रखा जाता है
पहला क़दम।