भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बच्यारौ म्हूं / प्रेमजी प्रेम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रामजी की चिड़िया
रामजी कौ खेत
फेर म्हें कुण?
म्हारौ कांई?
कांईं म्हूं अर कांईं म्हारी ज्यात?
पेट भर्यां पाछै भी
चांच भर’र उड ज्या छै
चड़कल्यां
चड़कल्यांन का पळ र्या छै
पूरा का पूरा खांनदांन
अर म्हूं
बणर्यौ छू गंगाराम
रामजी की चड़कल्यां
आवै छै, खावै छै
रामजी कौ खेत।
म्हूं बादळ्यां की मनवार करूं छूं
म्हूं खरार-खरूर करूं छूं
म्हूं ई पटकूं छूं खाद-बीज
पण रामजी का राज में
म्हारा गोफ्या कै आगै
ऊभी होज्या छै
बाप-दादां की बात
रामजी की चिड़िया
रामजी कौ खेत
खावौ री चड़कल्यां
भर-भर पेट।