भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच गए कि / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
बच गए कि तुम्हारी क़िस्मत इतनी अच्छी
लुढ़कती चट्टान से ज़रा-सी दूरी थी
बच गए कि एकाएक बारिश में
तुमने खुले में अपने को बेपरवाह छोड़ दिया था
और तुम्हारी पीठ देखती रही पेड़ पर बिजली का टूटना
बच गए कि एक बच्चा तुम्हारे साथ था और घर नहीं लौटना चाहता था
बच गए कि तुम्हारी घड़ी बुरे समय के विरुद्ध दौड़ पड़ी थी बेतहाशा
बच गए कि तुम इस बात भी आदतन बीड़ी सुलगाने के लिए रुक गए थे बीच रास्ते
बच गए कि तुम इसी समय काम के बाद कारख़ाने से निकल रहे थे
बच गए कि तुमने खोल रखा था अपना रेडियो कि अब बिजली गुल हुई
बच गए तुम कि तुम्हें आदत है नींद में चलने की
इस बार बच गए तुम इसका यह मतलब नहीं
कि तुम सचमुच बच गए।