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बजते उन्हीं के नगाड़े हैं / केदारनाथ अग्रवाल
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बजते उन्हीं के अब नगाड़े हैं
पढ़ते जो मरण के पहाड़े हैं
अशरण के शरण के अखाड़े हैं
संकट को मार-मार माँड़े हैं
केतु वही कीरत का गाड़े हैं ।