Last modified on 28 फ़रवरी 2008, at 12:26

बजते उन्हीं के नगाड़े हैं / केदारनाथ अग्रवाल

बजते उन्हीं के अब नगाड़े हैं

पढ़ते जो मरण के पहाड़े हैं

अशरण के शरण के अखाड़े हैं

संकट को मार-मार माँड़े हैं

केतु वही कीरत का गाड़े हैं ।