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बजबाक प्रेरणा / मन्त्रेश्वर झा

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हे हमर मित्र हमर बन्धु बान्धव
अहाँ - जे कहलहुँ से हम सुनलहुँ
मुदा बुझलहुँ नहि
अहाँ कहियासँ कहैत रहल छी हमर मित्र
जे अन्हार सँ करू समझौता
जे एक चिनगी इजोत भेटि जाय हमरो
लगेबा लेल अपना मुकुट मे
आ हमहूँ अपन आरोपित
गुमान मे चमकी
कोनो अन्तहीन काँट भरल जंगलमे
हमहूँ कोनो गंधमे गमकी
नहि, हमर मित्र नहि,
शक्ति के पूजा तऽ करैत छी हमहूँ
मुदा रावणमे सेनामे
कुंभकर्णक मालिश करबाक लेल
कथमपि नहि, कथमपि नहि हम गाबि सकब
सूर्पणखाक प्रेम गीत।
कंसक जय जयकार सुनैत-सुनैत
हम भऽ गेल छी बोक
तखन कोना के बहरायत फोंक
चाटुकारिताक बकार
नहि, हमरा छोड़ि दिअऽ हमर मित्र
हमरा अपने हाल पर।
जतबा जे अवशेष अछि
आशाक संवल
तकरा बले सर्वत्र पसरल
दुःख आ निराशा सँ प्रेम
करय दिअऽ
एक ने एक दिन अवश्ये
हेतैक भिनसर
टुटतैक रातिक गहन अन्हार
हम रही वा नहि
अहाँ रही वा नहि
आइ ने काल्हि आबिये जायत
सबहक पड़ाव
हम जे भऽ गेल छी अत्याचारक
अट्टहास सुनैत-सुनैत बहीर
से बहीरे रहय दिअऽ
हमर मित्र।
मुदा जऽ भऽ सकय तऽ
बौक मुँह के
बजबाक प्रेरणा दिअऽ।
मुदा दिशा दशा बिसरि गेल
पूब आ पच्छिम
चारू कात निश्शब्द, स्पंदनहीन, चुप्प
बजबाक अधिकार के भेटि गेलैक
आजन्म कारावास
मूल, गोत्र नाम रटलक डेरायल रहबाक छंद
कविता खसल धाराशायी साष्टांग
कुकुर भुकल राति भरि
बौका संसार
हनुमान चालीसा कें पीबि गेल
उन्मत्त सुरसा
चुप्प चुप्प चुप्, जुनि किछु बाजी
कहलनि शशिनाथ भाइ
मौने भए साधी
बाजत जे भागत जे भऽ जायत ध्वस्त
सैह टा कहैत अछि अपन सबहक नीतिशास्त्र
तेँ रहू चुप्प,
स्पंदनहीन, निश्शब्द चुप्प, चुप्प, चुप्प।
चारू कात भऽ गेल निश्शब्द स्पंदनहीन, चुप्प
कुहरि-कुहरि फाटि गेल केराक पात
गाछे गाछ बास लेलक
गहुमनक केचुआ
‘करैत’ घोंसिया गेल आङन-आङन
सभ क्यो चुप्प-चुप्प
क्यो किछु ने बाजू
बड़का-बड़का इन्टेलेक्चुअल
सुविधा भोगी दास
दासमदास खबास
सभ चुप्प, डरल हतास
चारू दिशा भऽ गेल त्रस्त
सूर्यक की उगब, की भिनसर की अस्त
महिषासुरक बढ़ल गेल सेना पर सेना
घेरि लेलक सभके कतेक चालीस चोर
अली बाबा भऽ गेल
चौके चौक पस्त।