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बज़्मे-ग़म ख़ूने-जिगर पे मिरे मेहमान थी रात / सौदा
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बज़्मे-ग़म[1] ख़ूने-जिगर पे मिरे मेहमान थी रात
आहे-सरगर्म[2] मिरी शमए-शबिस्तान[3] थी रात
देखिए आज कि किस तरह से गुज़रे हम पर
दिन से महशर[4] के तो कल दस्तो-गरेबान[5] थी रात
क़तरे उस चेहरे पे शब यूँ थे अश्क के गोया
जाए-शबनम-ब-गुलिस्ताँ[6] गुहर-अफ़शान[7] थी रात
गुज़री पल मारते पे इस तरह कि जैसे शबे-वस्ल[8]
बेख़ुदी अपनी अजब बर-सरे-एहसान[9] थी रात
दिन तो नज़रों में शबे-क़ीर[10] था मेरी तुझ बिन
महफ़िले-शब[11] में ख़ुरशीदे-दरख़्वान[12] थी रात
क़ता:
होके मायूसे-शिफ़ा[13] शब ये कहे था 'सौदा'
शमए-बालीं[14] भी सुन इस हर्फ़ को गोयान थी[15] रात
लाख तदबीर तबीबों ने मिरी की अफ़सोस
दर्दे-हिजराँ[16] के लिए वस्ल के दरमान[17] थी रात