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बड़ा कठिन / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
हिमकर से आँख चुराना बड़ा कठिन !
यह जब अपनी नव-आभा को
सूने नभ में फैलाता है,
तब भावुक अंतर का सागर
सुख-लहरों से भर जाता है,
- पर, पल भर भी
- हिमकर को पास बुलाना बड़ा कठिन !
चंचल अँखियाँ जब निंदिया के
पलने पर चढ़ सो जाती हैं,
जब क्षण भर में तन-मन की धन-
राशि परायी हो जाती है,
- तब भी, सचमुच
- हिमकर की याद भुलाना बड़ा कठिन !