बड़ा दादा छोटा दादा (कविता) / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'
आज शहर का दादा बड़ा इधर आया
और मुहल्ले के दादा को धमकाया—
“सब कहते तू बदमाशों का पंडा है
समझ रहा अपने को भारी गुंडा है।
रखता तू बंदूक, छूरी, लाठी, बल्लम
और जानता है कैसे बनता है बम
मैंने खूब समझ ली है नीयत तेरी
लेना चाह रहा दादागीरी मेरी।
सारे अस्त्र-शस्त्र अपने मुझको दे दे
अगर नहीँ, तो मुझसे मोल दुश्मनी ले”।
छोटा दादा बोला, “यह सच बात नहीं
मेरे मन में कोई कपट नहीं, कुघात नहीं।
क्या बिगाड़ सकता हूँ मैं दादा तेरा
चलता बस छोटा-मोटा धंधा मेरा
मेरे पास बड़ा कोई हथियार नहीँ
तेरा यह आरोप मुझे स्वीकार नहीं।
ले ले कभी तलाशी तू मेरे घर की
मुझसे कोई बात नहीं तुझको डर की”।
“नहीं, नहीं, तू बिल्कुल झूठ बोलता है
तू किताब के आधे पृष्ठ खोलता है”।
इतना कहकर दादा बड़ा घुसा घर में
तहस-नहस कर डाला, सबकुछ पल भर में
कोई खतरनाक हथियार नहीं पाया
किन्तु न अपनी करनी पर वह शरमाया।