भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बड़ा बाघ / सुधीर बर्त्वाल
Kavita Kosh से
छ्व्टा मा सूणी छो कि
जु ग्वोरूं तै मारदु
सु ग्वर्या बाघ होंदु।
अर जु मनख्यूँ तै मारदु
सु मनख्या बाघ होंदु।
पर अब पता चलि कि,
जौन चूसलिन हमारी आस,
हमारा संस्कार।
हमारी दया, लाड, त्याग
अर हमारा बोटं्या रीति-रिवाज।
सी...............
यूं से भी बड़ा बाघ होंदा।