भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़ा ही अजब देखो संसार है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ा ही अजब देखो संसार है ।
यहाँ जीत भी बन गयी हार है।।

नहीं पाप मन से भी जिसने किया
वही आज सब का गुनहगार है।।

भड़कती हैं हिंसा की चिंगारियां
हुआ हर बशर आज लाचार है।।

बुझाने लगी हैं दिया आँधियाँ
किया दीप ने किन्तु प्रतिकार है।।

लिये पीर बाजार में आ गये
नहीं कोई इसका खरीदार है।।

उठो दीप विश्वास का बाल दो
वही तो जमाने को दरकार है।।

कहा 'ना' मगर इस तरह हँस दिया
कि जैसे किया उस ने स्वीकार है।।