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बड़ा / नील कमल
Kavita Kosh से
कोई नहीं मानेगा
कि आकाश समा सकता है
दो आँखो में ।
कोई नहीं मानेगा
कि पाताल की गहराई है
हृदय के भीतर ।
यह एक पृथ्वी, कंधे से नीचे
फैलती हुई सीने पर
यक़ीन दिलाएगी,
मनुष्य बड़ा है
ब्रह्माण्ड से भी बड़ा ।