बड़ी-बड़ी बातें / रणजीत
तुम प्यार नहीं दे सकती हो
इन्कार करो
क्यों बड़ी-बड़ी बातें बेकार बनाती हो।
जानता हूँ ज़िंदगी में प्यार कितना है जरूरी
अपनी-अपनी है लेकिन सबकी मजबूरी
हिम्मत हो अगर बग़ावत की आओ हम प्यार करें
रस्मों की कड़ी चुनौती को स्वीकार करें
पर अगर नहीं आ सकती हो तो साफ़ कहो
क्यों धोखेबाज इशारों में मुझको उलझाती हो?
तुम प्यार नहीं दे सकती हो
इन्कार करो
क्यों बड़ी-बड़ी बातें बेकार बनाती हो।
मेरे चलने का मक़सद है, मैं यों ही नहीं चला करता
मेरी आँखों में मंज़िल का ही सपना सिर्फ़ पला करता
मंज़िल हो वही तुम्हारी तो आओ हम साथ चलें
ले मन में मन की चाह, हाथ में हाथ चलें
पर अगर नहीं चल सकती हो पथ से हट जाओ
क्यों राह रोक मेरी मुझको फुसलाती हो?
तुम प्यार नहीं दे सकती हो
इन्कार करो
क्यों बड़ी-बड़ी बातें बेकार बनाती हो।
मैं द्वार तुम्हारे आया था सागर लेकर
तुम तृप्त हो गई सिर्फ़ एक गागर लेकर
क्षमता हो तो अब भी अपना विस्तार करो
मेरे पूरे अभिनंदन को स्वीकार करो
पर अगर नहीं कर सकती हो खुल कर बोलो
क्यों अपनी इस कमजोरी को बहिनापे में बहलाती हो?
तुम प्यार नहीं दे सकती हो
इन्कार करो
क्यों बड़ी-बड़ी बातें बेकार बनाती हो।