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बड़ी- बी और अली मियाँ-7 / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
कभी कोई था :
फिर यह हुआ
साँस आख़िरी
चढ़ गई
सीढ़ी एक और
छत बन गई
मृत होना था जहाँ मुझे
थी चारदीवारी
जाना था जिस मार्ग
कतरन-सा वह अब
था लिपटा
गले आँखों पर
थी जल्दी तुम्हे
तुम गए
आकाश बताते छत को
मुझे बुलाते
कभी कोई था बीच हमारे
नहीं माना हमने
कहता है अब
था धोखा वह
ठोस
आख़िरी साँस आ गई
थम गई