Last modified on 25 दिसम्बर 2014, at 20:51

बड़ी आँख कौ जो तारौ है / महेश कटारे सुगम

बड़ी आँख कौ जो तारौ है ।
बस ऊकौ बारौ न्यारौ है ।

गोबर बनौ कंगूरा कैसें,
कोउ तौ पौंचावे वारौ है ।

खूबई तीरन्दाज़ बने रऔ,
कोउ नईं पूछ परख वारौ है ।

हमें काय सें कोउ पूछ्वै,
हमनें की पै जल ढा रौ है ।

सुगम घिसट कें तुम मर जैहौ,
छोटन कौ नईं अब चारौ है ।