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बड़ी आँख कौ जो तारौ है / महेश कटारे सुगम
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बड़ी आँख कौ जो तारौ है ।
बस ऊकौ बारौ न्यारौ है ।
गोबर बनौ कंगूरा कैसें,
कोउ तौ पौंचावे वारौ है ।
खूबई तीरन्दाज़ बने रऔ,
कोउ नईं पूछ परख वारौ है ।
हमें काय सें कोउ पूछ्वै,
हमनें की पै जल ढा रौ है ।
सुगम घिसट कें तुम मर जैहौ,
छोटन कौ नईं अब चारौ है ।