भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़ी आँख कौ जो तारौ है / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ी आँख कौ जो तारौ है ।
बस ऊकौ बारौ न्यारौ है ।

गोबर बनौ कंगूरा कैसें,
कोउ तौ पौंचावे वारौ है ।

खूबई तीरन्दाज़ बने रऔ,
कोउ नईं पूछ परख वारौ है ।

हमें काय सें कोउ पूछ्वै,
हमनें की पै जल ढा रौ है ।

सुगम घिसट कें तुम मर जैहौ,
छोटन कौ नईं अब चारौ है ।