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बड़ी उपेक्षा अभी शेष है / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
बड़ी उपेक्षा अभी शेष है
देखते जाओ,
परंपरा अब बची लेश है
देखते जाओ।
कितनी बातें बिन आधार की
पाँव पसारी
कितनी रातें बिना-चाँद
बेवजह गुज़ारी,
सर पर उजले अधिक केश हैं
देखते जाओ।
वातावरण में सुख-शांति हो
अनुभव करना,
वर्तमान में जीना है तो हर
संभव करना,
विषय बना सन्मुख विशेष है
देखते जाओ।
समरसता बिगड़ी समाज की
फिर भी चुप हो
नज़रें कहाँ-कहाँ टिक पाती हैं
लोलुप हों
तन स्वदेश है मन विदेश है
देखते जाओ।