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बड़ी देन आँखें! / आरती 'लोकेश'

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सम्पूर्ण सृष्टि हैं हमें दिखातीं,
छोटी-सी बलवान ये आँखें।
तारक-ग्रह-चन्द्र भान करातीं,
कितनी बड़ी देन हैं आँखें।

झलक निसर्गी छटा निराली,
उर के वीराने भर हरियाली।
दृष्टि पखेरू ले हर्षित पाँखें,
कितनी बड़ी देन हैं आँखें।

प्रभु मूरत के दर्शन पाकर
मुँद जातीं भक्ति में आकर।
शिला बसे ईश्वर को ताकें,
कितनी बड़ी देन हैं आँखें।

ज्ञान सुरसरि स्रोत को गहतीं,
ग्रंथों से शिक्षा बन बहतीं।
अक्षर में उपदेश हैं झाँकें,
कितनी बड़ी देन हैं आँखें।

सुप्त रहस्य करें उजागर,
गुप्त भाव आँसू में लाकर।
हृदय के गूढ़ भेद उझाकें,
कितनी बड़ी देन हैं आँखें।

सब रंग इनके बिन बेमोल,
रूप-आकार का न कोई तोल।
जड़-चेतन अस्तित्व बचाके,
कितनी बड़ी देन हैं आँखें।

सोचो, जिन्हें यह वरदान नहीं है,
कृपा-करुणा की बन जननी हैं।
निज शक्ति अन्य इंद्रियों में बाँटें,
कितनी बड़ी देन हैं आँखें।

दृष्टि नहीं पर स्वप्न भरे हैं,
आकांक्षा पुष्प इनसे झरे हैं।
दान कर आँखें जब अंतिम साँसें,
तीर्थ-पुण्य महादान हैं आँखें।