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बड़ी मुश्किल से छुपाया है कोई देख न ले / जावेद सबा
Kavita Kosh से
बड़ी मुश्किल से छुपाया है कोई देख न ले
आँख में अश्क जो आया है कोई देख न ले
ये जो महफ़िल में मेरे नाम से मौजूद हूँ मैं
मैं नहीं हूँ मेरा धोका है कोई देख न ले
सात पर्दों में छुपा कर उसे रक्खा है मगर
दिल को अब भी यही धड़का है कोई देख न ले
डर रहा हूँ के सर-ए-शाम तेरी आँखों में
मैं ने जो वक़्त गुज़ारा है कोई देख न ले
हाथ नरमी से छुड़ाती हुई ख़ल्वत ने कहा
ये जो ख़ल्वत है तमाशा है कोई देख न ले
तेरा मेरा कोई रिश्ता तो नहीं है लेकिन
मैं ने जो ख़्वाब में देखा है कोई देख न ले
साथ चलना है तो ग़ैरों की तरह साथ न चल
शहर का शहर शनासा है कोई देख न ले