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बड़े गए ते ऐंठ आँठ कें / महेश कटारे सुगम

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बड़े गए ते ऐंठ-आँठ कें ।
वापस आ गए बैठ-बाठ कें ।

कछू दिना तक चली रईसी,
अब रो रये हैं मेंट-माट कें ।

मनवा ल ईं सब अपनी बातें,
ई सें ऊ सें चेंट-चाट कें ।

सबरी अकल ठिकानें आ गई,
दोना पातर चाट-चाट कें ।

फिर सें रस्ता पै आ गए हैं,
तनक दिनन तक रूठ-राठ कें ।