भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बड़े ताजिरों की सताई हुई / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
बड़े ताजिरों की सताई हुई
ये दुनिया दुल्हन है जलाई हुई
भरी दोपहर का खिला फूल है
पसीने में लड़की नहाई हुई
किरण फूल की पत्तियों में दबी
हंसी उसके होंठो पे आई हुई
वो चेहरा किताबी रहा सामने
बहुत ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई
ख़ुशी हम ग़रीबों की क्या है मियां
मज़ारों पे चादर चढ़ाई हुई
उदासी बिछी है बड़ी दूर तक
बहारों की बेटी परायी हुई