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बड़े लोगों की खेलें / मनोज शर्मा

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बड़े लोग, बड़ी खेलें खेलते हैं
जैसे गोल्फ, टैनिस, पोलो वगैरह
क्रिकेट तो सर पर बैठा है
और आजकल तो
कबड्डी की टीमों की नीलामी होती है

बहन खेलती थी खोखो, स्टेट खेली
नौकरी नहीं मिली, ब्याही गयी

बड़ी खेलें, बड़े लोग
यहाँ खेल से नहीं कुछ लेना देना
बड़े लोग तय करते हैं
कि कहाँ, कब और खेलना है क्या

एक रहे जसदेव सिंह
मेरे निकट अभी भी मोहल्ले के कई
दोस्त, चाचा, फूफा, मौसियाँ, माताएँ
और एक रेडियो रहा है
जिसके साथ खेलता रहा
पूरा देश
बिना सट्टा लगाए

नहीं, यह विलुप्त काल का
कोई सपना नहीं है
यहाँ अंतर्ध्यान नहीं होता कोई
इसी संवेदना को आज भी
चक दे रहे हैं, लोगबाग

इसी काल में
शर्मिंदा है खेलों का जुनून तक
मोहताज़ है पिज्जे भर का

चौसर जमाए राजा जी ने अभी अभी
घोषित किया है
कि अबकि खेलों पर करेंगे
मन की बात

दौड़ाक, भूखा दौड़ रहा है
निशानेबाज़ के पिता ने लिया था कर्ज़
बास्केटबॉल टीम को पता नहीं
खेल पाएंगे या नहीं
कोच, यौन शोषण करते पाए गए हैं

राजा ने की है सौवीं बात
कि लिए जाएंगे उधारी तक में हथियार
कि सभी पड़ोसी देशों को सबक सिखाना ही है
कि विगत सत्तर वर्षों में नहीं बनी थी
राष्ट्र की ऐसी खेल नीति

मेरे पास अभी भी है
गेंद संग दौड़ती
जसदेव सिंह की आवाज़
अभी भी सोचू हूँ
यार, भर-भर सांस कबड्डी खेलते
हुंकार ले-ले करते रहे
हत, तू-तू तू तू!