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बड़े हुए गुड्डू / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
छोड़ के अम्माँ की गोदी-कैंयाँ ।
बड़े हुए गुड्डू, चलें पाँ-पाँ पैंयाँ ।
तीन चका की
लकड़ी की गाड़ी
लेकर घूमें
अगाड़ी-पिछाड़ी
पत्ते-सी काँपें दो छोटी-छोटी बैंयाँ ।
चलते-चलते पग
डगमग होवें,
ख़ुश होके किलकें,
रूठे तो रोवें,
घड़ी-घड़ी अम्मा लेवें बलैयाँ ।
बड़े हुए गुड्डू, चलें पाँ-पाँ पैंयाँ ।