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बड़ रे जतन हम सिया जी के पोसलौ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत बहुत ही कारुणिक है। बेटी-विदाई के वियोग में पास-पड़ोस, घर परिवार, सखी सहेली ही नहीं, वरन् पनघट की पनिहारिनें और घोड़सार के घोड़े भी रोने लगे। बेटी-विदाई का अवसर ऐसा कारुणिक होता ही है। इस दृश्य को देख-सुनकर बिरले ही अपने को रोक सकते हैं।

बड़<ref>बड़े</ref> रे जतन<ref>यत्न से</ref> हम सिया जी के पोसलौं, ओकरो<ref>उसे भी</ref> रघुबंसी लेने<ref>लिये हुए</ref> जाय।
बैठल बिदेसिया दलनमा में रोबै, झहरि झहरि खसै<ref>गिरता है</ref> लोर॥1॥
घरबा में रोबै अम्माँ भौजिया, सभबा में बाबा हमार।
पनिया भरैतेॅ<ref>भरते हुए</ref> पनभरनी जे रोबै, घोड़बा रोबै घोड़सार॥2॥
रने बने रोबै सखी हे सहेलिया, जोड़ी बिजोड़ी कैने जाय।
जनि कानू<ref>रोओ</ref> जनि खीझू सीता सुकुमारी, देखअ नगर के रीति॥3॥

शब्दार्थ
<references/>