बडो वंश बसनात / जीवनाथ कवि
बडो वंश बसनात
(वि.सं. १८३१)
श्री गणेशपद वन्दिकै विधि (घि) नि विहारन सोयेः ।
सुरपुर नरपुर नागपुर तिहुपुर जाहिर होये ।।१।।
बीते अठारह सौ वरिस सम्वत् मत येकतीसः ।।
फागुण सुक्ला सप्तमी वार ललित रजनीसः ।।२।।
विमल वंश वरनत सुकवि सुनो सव दये चित्तः ।।
जीवनाथ कविनै करि दोहा सहित कवित ।।३।।
बडो वंश बसनात है तिह्नमो विविध प्रकारः ।।
जो ई कुलमो अवतेर सोभा सूर उदारः ।।४।।
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चहुवर घट्टा उमडे अरिके ताँहाँ तिरचले घन बूद के नाञीः ।।
फौज हाहाकारि हुलिकरे तेरो आरनते ताहाँ धूम मचाईः ।।
साँगा कि चौक चालि ताहाँ तेग तमाम करे करतूति बनाई ।।
बुझे ताँहाँ शिवरामबहादुर काम सबै नरनाह बनाईः ।।१०।।
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नाहरसिंह जमाहि रहै रणमण्डल नाहरसैं गरजैः ।।
करतूतिकरे रणमंडल मो महि मंडल चंड सुधादरजैः ।।
सदा नरनाह निगाह करै सरदार उदार न सौ सबजैः ।।
देस विदेस मधेस तमाम जपै सभ नाम सुनै अरजै ।।१२।।
चाभि चाभि चरवि चम् प्रवल प्रचण्ड रण ।
चंडिका अध्या (घा) ये येजु, कहरसिंह राषि हैः ।।१६।।
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चलत गोल दल मलत हलत हल हल वैरिगनः ।।
कंपि कोपि षर भरत डरत थर थरत सकल जनः ।।
चढि तुरंग घ (ध) स मसत कसत कसम सतक क्षनवः ।।
तवफ निसफ निफर कडर कहरि हरक होत तवः ।।
श्रीधौकलसिंह उदा भार दरबार सँभार करः ।।
जस जाहाज जगराज साज सिर ताज काजवरः ।।२२।।
('एेतिहासिक कविता' बाट उद्धृतांश)