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बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा / जनार्दन राय

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यश इतना गुंजा विज्ञान तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

तम का साम्राज्य सदा रहता यहां,
गम का तराना ही गाता जहां।
दुख-दर्द दूर हुआ तुमसे हमारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

सभ्य बने बैठे हैं मानव जो आज,
पल भर में कर लेते अपना सब काज।
सबके पीछे है वरदान तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

दिन को भी मात करते विद्युत-प्रकाश,
काम करते यन्त्र मनुज पाता अवकाश।
अचरज में डाल रहा काम तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

भूतल को छोड़ जाते अन्तरिक्ष-यान,
करते कमाल सदा तेरा वायु-यान।
थकती न जीभ कहती दान तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

‘मानस’ का पाठ करते ‘गीता’ का गान,
ज्ञान पा रहे पढ़के बाइबिल कुरान।
संभव किया छापाखाना तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

हरित क्रान्ति भू पर सुख-शान्ति दे रही,
उद्योग-क्रान्ति विभव दान कर रही।
होती उन्नति है जय मंत्र तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

जाते थे देश ओ विदेश तक ही हम,
चन्द्रलोक जाकर अब लेते हैं दम।
गया यह नहीं है प्रताप तुम्हारा?
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

शौचालय सुलभ देते विद्युत-प्रकाश,
गोबर के गैस से ही पुराते हैं आश।
राम-बाण बन रहा है काम तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

चित्रपट, दूरभाष की है जो शान,
दूरदर्शन का है बढ़ता जो मान।
आकाशवाणी उपकार तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

उरजा की ढेर लगी शक्ति बढ़ रही,
अगणित समस्यायें आपटल रही।
कुदरत भी मान रहा धाक तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

धरती है स्वर्ग बनी इठला रही,
सुरपुर की छवियां भी झुठला रही।
दया, दान, धर्म है विख्यात तुम्हारा,
बढ़ता ही जाता गतिमान तुम्हारा।

-समर्था,
15.12.1985