भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बढ़त चान पर तक चढ़ल आदमी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बढ़त चान पर तक चढ़ल आदमी
कहाँ से कहाँ ले बढ़ा आदमी

विधाता के सुन्दर ई उपहार हऽ
गुनी ज्ञान-साँचा ढरल आदमी

बढ़ेला कबो मन में कुछ गन्दगी
सुधा मे मिलल तब गरल आदमी

अगर स्वार्थ के पाँक में ना धँसे
बने शुद्ध गंगा के जल आदमी

नियति के नियम पर करे जे अमल
उहे बन सकेला सबल आदमी

रखत हाथ में ताकतो बा भले
तबो रात-दिन बा डरल आदमी