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बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया / राहत इन्दौरी
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बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया
मेरे नक़्शे से कट गयी दुनिया '
तितलियों में समा गया मंज़र
मुट्ठियों में सिमट गयी दुनिया
अपने रस्ते बनाये खुद मैंने
मेरे रस्ते से हट गयी दुनिया
एक नागन का ज़हर है मुझमे
मुझको डस कर पलट गयी दुनिया
कितने खानों में बंट गए हम तुम
कितनी हिस्सों में बंट गयी दुनिया
जब भी दुनिया को छोड़ना चाहा
मुझसे आकर लिपट गयी दुनिया