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बढ़ रहा है तनाव क्या देखूँ / अनिरुद्ध सिन्हा

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बढ़ रहा है तनाव क्या देखूँ
अब रगों का खिंचाव क्या देखूँ

लिख रहा हूँ ग़ज़ल तहेदिल से
उँगलियों का कसाव क्या देखूँ

बाहरी रखरखाव में गुम हूँ
मन के भीतर का घाव क्या देखूँ

जो है मजबूरियों से ही कायम
वक़्त का वो दबाव क्या देखूँ

क़र्ज़ पीकर फसल न घर आई
अब दलालों का भाव क्या देखूँ