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बतलाए देते हैं यूँ तो / रामकुमार कृषक

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बतलाए देते हैं यूँ तो बतलाने की बात नहीं

खलिहानों पर बरस गए वो खेतों पर बरसात नहीं


नदियाँ रोकीं बांध बनाकर अपना घर-आंगन सींचा

औरों के घर डूबे फिर भी उनका कोई हाथ नहीं


धरती नापें तीन पगों में किले-कोठियों वाले लोग

जिनका राज-सुराज ख्वाब में भी उनके फुटपाथ नहीं


हुए धरम-पशु अपने-अपने धरम-गुरू तो चीज़ बड़ी

जिनके मंदिर-मस्जिद उनकी कोई जात-कुजात नहीं


कई बार देखा-परखा है हाथ मिला हमने उनको

वे तो उदघाटनकर्ता हैं, नींव रखें औकात नहीं