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बताएँ क्या तुम्हें कैसा हमारा हाल है यारो / कांतिमोहन 'सोज़'

बताएँ क्या तुम्हें कैसा हमारा हाल है यारो ।
कि अब तो ख़ामुशी भी जुर्म का इक़बाल है यारो ।।

सितमगर से गुरेज़ाँ होके हम ज़िन्दा रहें क्यूँकर
सिवा उसके हमारा कौन पुरसांहाल है यारो ।

जो दिल हद से ज़ियादा चुलबुला था एक फ़ितना था
करें क्या ज़िक्र उसका बेतरह पामाल है यारो ।

सदाक़त का तक़ाज़ा है गिला ग़ुर्बत का क्यूँ कीजे
मताए-ग़म<ref>दर्द की दौलत</ref> से अपना दिल तो मालामाल है यारो ।

चलो हमने भी अपने कान पकड़े और की तौबा
कहाँ की आशिक़ी ये जान का जंजाल है यारो ।

बिछौना-ओढ़ना भी सोना-जगना साँस लेना भी
यही तेग़े-सुख़न हर बार अपनी ढाल है यारो ।

उठे तेशा<ref>कुदाल</ref> कोई जो ख़ामुशी की बर्फ़ को तोड़े
कलामे-सोज़ तो बस उसका इस्तक़बाल है यारो ।।

शब्दार्थ
<references/>