बताए कोई हम किधर जा रहे हैं
पता कुछ नहीं है मगर जा रहे हैं
निकल आए हैं अजनबी जंगलों से
समझते थे हम अपने घर जा रहे हैं
नहीं है कोई मीर इस कारवाँ का
जो कह दे सही राह पर जा रहे हैं
हम उलझाव भटकन दिशाहीनताएँ
नई नस्ल को सौंप कर जा रहे हैं
वहाँ की कभी कल्पना तक नहीं की
जहाँ पर मेरे वंशधर जा रहे हैं