बताओ, तुम्हारे ज्ञान को क्या कहूँ / संजय तिवारी
मत्स्यों, कुरु, पांचालों
और वंशों की श्रेणी
परिगणित उशीनरो की वेणी
जातक कथाओ के नायक
महाभारत के गायक
पाणिनि के आधार
उशीनर कुल के विचार
तुमने कभी शिबि को भी जाना?
अपने उन पुरखो को भी माना?
कभी किसी ने ली
तुम्हारे त्याग की परीक्षा?
कभी तुम्हें महसूस हुई किसी
परीक्षक शक्ति की इच्छा?
दुःख से त्याग
त्याग का दुःख
आग का राग
राग का सुख
शिबि थे पुरुवंश के कुमार
उशीनर के नरेश
शौक था परोपकार
धर्मात्मा थे
शक्ति आर्त की रक्षा के लिए
अजातशत्रु परमात्मा थे
प्रजा के सुख में ही सुखी
प्रजा के दुःख में ही दुखी
तुम्हें तो कभी नहीं होगा आभास
गौतम कैसा होता है
परीक्षा का एहसास
एक कबूतर को बाज़ ने दौड़ाया
भोज्य बनाने की युक्ति भिड़ाया
कबूतर भाग कर शिबि की गोद में गिरा
बाज़ आकर भिड़ा
राजा से कहा? छोडो मेरा आहार
राजा ने बाज़ पर किया शब्द प्रहार
कहा? मेरा ही मांस ले लो कबूतर के भार का
मेरी शरणागत के आभार का
पलड़े पर एक ओर कपोत
दूसरी ओर राजा की देह
राजा ने बाज़ को दिया आमंत्रण
मांस भक्षण का निमंत्रण
सृष्टि भी हिल गयी
शिबि के त्याग से परीक्षकों को बुद्धि मिल गयी
अग्नि थे कपोत? बाज़ थे इंद्र
शिबि को बना दिया महीन्द्र
त्याग और तप की यह परीक्षा थी
दैविक ज्ञान की दीक्षा थी
बताओ? तुम्हारे ज्ञान को क्या कहूँ
तुम्हारी कथित त्याग में निहित उपेक्षा
कैसे सहूँ
तुम्हारी ही पत्नी हूँ
इसलिए अब मुँह खोल रही हूँ
हाँ सिद्धार्थ? मैं यशोधरा बोल रही हूँ।