बत्तीसवें जन्मदिवस पर / केशव
बत्तीस बरसों का यह
लम्बा अंतराल लांघ किसी तरह
जिस ज़मीन पर खड़ा हूं
एक असह्य बोझ तले दबी लड़खड़ा रही है
खुद को संभालने की
तमाम कोशिशों के बावजूद
डूबता जा रहा हूँ
गर्व से सीना ताने बढ़ती
आज़ादी की धुआंती चिमनी में
मेरी सोच और महसूसने की तमाम
शक्तियां होती जा रही हैं कुंठित
दोगली स्थितियों से लड़ते-लड़ते
और देश का नेता
दुनिया में अपना नाम रोशन
करने के चक्कर में
चला रहा है हवा में तलवारें
मुझे सिखा रहा
कागज की नावों पर बहने का मंत्र
हर रात
नये सूरज के इंतजार में
पटरियों पर लेटता है जो हुजूम
सुबह उसे गला हुआ अंग
करार दे दिया जाता है
जब भी इस दुस्वपन को कुरेदने की खातिर
बढ़ाता हूँ नाखून
मुझे खून के धब्बे पोंछने का
रोजगार दे दिया जाता है
रेशमी ज़िल्दों में जकड़ा इतिहास
पुस्तकालयों के अंधेरे परित्यक्त कोनों में
धीरे-धीरे तोड़ रहा है दम
एक नये इतिहास के निर्माण के लिए
मेरी आँखों पर पट्टियां बाँध
पीठ पर गोला बारूद लाद
छोड़ दिया गया है मुझे
एक जंगल के बीचों-बीच
सच
ये बत्तीस बरस
मेरी चेतना को दाग रहे हैं
बत्तीस गर्म सलाखों की तरह.