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बत्तीस साल की कुँआरी लड़की / देवांशु पाल

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बत्तीस साल की

कुंआरी लड़की

दफ़तर जाती है; लूना से

थोड़ी-सी महंगी साड़ी पहनकर

थोड़ा सा महंगा पाउडर लगाकर

थोड़ी सी मुसकराहट चेहरे पर लाकर




बत्तीस साल की

कुंआरी लड़की

अपने बारे में जितना नहीं सोचती

उससे ज़्यादा

उसकी मां सोचती है

उसकी शादी के बारे में

उसके पड़ोसी सोचते हैं

उसके चरित्र के बारे में

उसके दफ़तर के लोग सोचते हैं

उसके कुंआरेपन के बारे में




बत्तीस साल की

कुंआरी लड़की

दर्पण के सामने खड़ी होकर

सोचती है


कि वह सांवली क्यों है

कि वह दुबली क्यों है

कि उसका चेहरा आकर्षक क्यों नहीं है

कि कोई लड़का उससे प्यार क्यों नहीं करता

कि उसका पिता उसके लिए कोई वर क्यों नहीं ढूंढ पाता




बत्तीस साल की

कुंआरी लड़की

नींद में सपने देखती है

उसकी अस्मिता लूट जाती है

एक दिन बाज़ार में

एक दिन वह स्वयं

ज़हर खाकर आत्महत्या कर लेती है




बत्तीस साल की

कुंआरी लड़की के सपने

इतने बुरे और भयंकर क्यों होते हैं?