बदगुमाँ आज सारी महफ़िल है / संजू शब्दिता

बदगुमाँ आज सारी महफ़िल है
जाने किस राह किसकी मंज़िल है

हाले -दिल हम बयां करें कैसे
शहर का मसअला मुक़ाबिल है

उम्र बीती है मेरी सहरा में
दूर तक दरिया है न साहिल है

वो मेरी ग़ज़लों का ही है हिस्सा
वो कहाँ जिन्दगी में शामिल है

दिल मेरी एक भी नहीं सुनता
कैसा गुस्ताख़ ये मेरा दिल है

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