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बदनामी / सुशीला बलदेव मल्हू

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बाप दादा भारत से सरनाम ऐंले
झोली में धर्म संस्कृति के सिवाय
कछहुँ ना लैलें।

मेहनत करिन, दुःख काटिन,
और कबहुँ सरम ना देहिलें।
नाम रौशन करन अपन कौम के
और सरनाम के हम का कही,
नया भारत बनैलें।

पर अब?
पुरनियन के इज्जत मर्यादा,
मुद्दत के धर्म के कमाई,
दुइ-चार कुलबोरन
सब मिट्टी में मिलाय देइन।

के सोचे रहा?
कि हमार हिन्दुस्तानी नारी,
अधिकार की खातिर
लड़े तो लड़े,
पर इ कहाँ के मर्यादा
कि औरत मरद के

सिर पर चढ़े?
के सोचे रहा
कि हमार हिन्दुस्तानी
मेहनत करे के दर पर
गाँजा-कोकाइन के धन्धा में

अव्वल आई?
पुरखन बोलें राम जबान में
प्राण जाए प बचन ना जाए
और अब?

कोई सोचे रहा
कि इतना धोखा हमार जाति देई?
इतना फरेबी हमार जाति होई?

इतना झूठ हमार कौम बोली?
कोई सोचे रहा,
कि हमार हिन्दुस्तानी
फूट के कारण
दस ओर छितराई?
ना, हम तो ना सोचे रहली!
कभी ना सोचे रहली
कि इतना बदनामी होई!!
आँख खोल के देख
परसैदे देखा है।