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बदरा अमरित बरसावे हे / सिलसिला / रणजीत दुधु

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सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे,
छटा देख-देख अम्बर के मोर मन हरसावे हे।

देख कजरिया नाच रहल हन वन में झुमझुम मोर,
ठंढ़ा-ठंढ़ा मार रहल हन फर-फर पुरवइया जोर,
डगर तलइया में सज झिंगुर दादुर गीत गावे हे,
सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे।

हरियर चुनरी पेन्ह के बनगेल ई धरती महरानी
पीउ-पीउ गा रहल पपीहरा पी के मीठा पानी
भगजोगनी भुक-भुक करके सारी रात सेज सजावे हे
सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे।

बाग-बगयचा डगर-नगर में कइसन सफर सुहानी
चंदा संग नुक्का-चोरी खेले पर्वत पर निछावर जवानी
चमचम चमचम चमक बिजुरिया जीया धड़कावे हे
सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे।