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बदरा / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'

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करिया-करिया बदरा घिरलइ नाचे गोर बिजुरिया।
झूमझूम राधा सँग नाचे बँसुरी बजा सँवरिया॥
घिरल अमावस हे धरती पर सगरो घोर अँधरिया।
कहीं न लउके सउँसे जग से सरकल सुरुज सवरिया॥
अदरा के बदरा फट पड़लइ अँगना भेल कियरिया।
संइया के सुधियो बिसरल हे रहलन फेर नजरिया॥
टुकुर-टुकुर टक-टकी लगउले डेउँढ़ी के अगवरिया।
झाँक रहल ही मन आउर हे लेके प्रेम नजरिया।
फंेड़न के पतवन से टपटप जल-मोती के लरिया।
धरती पर गिरलइ अइसे जनु टपकल चमक बिजुरिया॥
विहँस रहल इन्दर धनुआ ले रसके भरल गगरिया।
झींगुर के झंकार भरल हे गूँजल सगर डगरिया॥
मँह-मँह मँहके गन्ध जुही के कुन्दकली के डरिया।
नेउता दे के सुघर केतकी भौंर रिझावे करिया॥
पिया-मिलन के टीस जगावे ई बदरा जगधरिया।
रह-रह विरह लहक रहलइ हे विहँसल हे चिनगरिया॥
झर-झर झरझर रिम-झिम झरे मेघ-फुलझरिया।
सर-सर मर-मर के सुर भर के हिलल इहाँ फुलवरिया।
छिपल कहाँ अइसन मउसम में नेह लगा वनवरिया।
सहम-सहम के रेंग रहल हे ललकी वीर बहुरिया॥
किलकारी भर रेंगा रेंगे हुलस रहल वधवरिया।