भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदलते सन्दर्भ / रवीन्द्र भ्रमर
Kavita Kosh से
सारा संदर्भ
बदल जाता है ।
इस कोने के फूलदान को
ज़रा उस कोने कीजिए,
इस आले के दर्पण को
उस आले,
या इस मेज़ का रुख़
ज़रा-सा यूँ
कि उधरवाली खिडकी का
आकाश दिखाई पडने लगे !
सारा संदर्भ
बदल जाता है
प्रत्येक दृश्य
नए-नए अर्थ देने लगता है
इस-ऐसे अनूठे
सत्य की उपलब्धि
मुझे तब हुई
जब
इधर की दीवार पर लगे
तुम्हारे चित्र को
मैंने उधर की दीवार पर लगा दिया!