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बदलने का समय / नवनीत शर्मा
Kavita Kosh से
सर्द बारिश में भीग
आँखों में जुगनू लिए
पनाह माँग रहे हैं
कुछ पिल्ले
ट्रक से टकरा कर
निचेष्ट हुई गाय की
खुली आँखों में है
कन्हैया के नाम खून भरी अर्जी
मुँह बँधवा कर
नंदी महाराज से शिकायत
करना चाहता है एक बैल
पीठ छिले गधे के मुँह से निकली है
अस्फुट-सी हाय
शेर ने पहली बार
झुक कर कहा है
मुझे बचा लो
भेड़ की पीठ पर हुआ घाव
कह रहा है
देवताओं के लिए अब ऊन ही काफी नहीं
चिडि़या को शिकायत है
शहर में काँटे हैं बहुत
ठीक कहा तुमने
यह रिश्तों की परिभाषा
बदलने का समय है।