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बदलाव / अंशु हर्ष
Kavita Kosh से
वक़्त हमेशा चलता रहता है अनवरत
बिना रुके बिना थमे
कुछ भी तो स्थायी नहीं है जीवन में
ना खुशी ना ग़म
अब देखो ना
रोशनी का त्यौहार भी बीत गया
कितना शोर था, उसके आने का
सब कुछ नया-सा, रोशन
मिठास लिए व्यवहार
फिर अब वही अकेलापन
ज़िन्दगी का अलबेलापन
और मैं फिर से वक़्त के बीतने का
इंतज़ार करूँगा
अगला त्यौहार आये
उसके लिए फिर से नए सपने संजोउंगा
त्यौहार के बाद का सूनापन
अपने अंदर लिए
बीते हुए लम्हों से
मुस्कुराहटें आबाद रखने की कोशिश करूंगा।