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बदलाव / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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अवश
परकटे पक्षी की तरह
निढाल पड़ा मधुआ
उठा
ठीक वैसे ही
जैसे जेठ का सूरज
उसने उठा लिया
तमक कर
अपने कंधे पर
कुदाल
और उसका चेहरा
दमकने लगा
परशुराम की तरह