भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदला देश चरागाहों मे / ओम निश्चल
Kavita Kosh से
बदला देश चरागाहों मे
अब कैसी पाबन्दी
ख़ुद के लिए समूची धरती
ग़ैरों पर हदबन्दी
निज वेतन भत्तों के बिल पर
सहमति दिखती आई
जनता के मसले पर संसद
खेले छुपम-छुपाई
देशधर्म जनहित की बातें
आज हुईं बेमानी
सड़कों पर हो रही
मान -मूल्यों की चिन्दी-चिन्दी
शस्य श्यामला धरती का
यह कैसा शील हरण
उपजाऊ ज़मीन का देखो
होता अधिग्रहण
जिनके हाथों में हल-बल है
हैं क़िस्मत के खोटे
पूंजीपतियों के माथे पर
है समृद्धि की बिन्दी
कहने को यह लोकतन्त्र
पर झूठे ताने-बाने
दिल्ली के मालिक बन बैठे
शाही राजघराने
लम्बे-चौड़े रकबे पर
क़ाबिज़ जनता के नायक
उनके ऊँचे सूचकांक हैँ
हम पर छाई मन्दी