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बदली गाँवों की तस्वीर / रजनी मोरवाल
Kavita Kosh से
कुछ वर्षों में बदल गई है
गाँवों की तस्वीर ।
मोबाईल ले घूम रहा
हर कोई अपने हाथ,
संगी-साथी बचपन के तो
रहे नहीं अब साथ,
तारों ही में उलझ गई है
जीवन की ज़ंजीर ।
टी० वी० के केबल मुँह ताके
चौपलों के बीच,
पुरखों के संस्कारों पर ही
पौध नई दी सींच,
आँगन के झगड़ों में सबकी
बिखर गई जागीर ।
हैंडपम्प घर-घर आ बरसा
सूखी जाती झील,
खेत खड़े सूने, खलिहानों
पर मँडराए चील,
बिन माँझी की नाव खड़ी है
देखो नदिया पार ।