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बदले सन्दर्भ / शिव बहादुर सिंह भदौरिया
Kavita Kosh से
लोकरीति की
पगरैतिन वह
अजिया की खमसार कहाँ है
हँसी ठहाके
बोल बतकही
सुन लेते थी
कही अनकही-
वही भेंट अँकवार कहाँ है
लौंग सुपारी
पानों वाली
ढोल मंजीरे
गानों वाली
लय की लोक विहार कहाँ है
बाल खींचते
अल्हड़ नाती
पोपले मुँह
आशीष लुटाती
ममता की पुचकार कहाँ है