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बदले हुए तट / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
नर्मदा का पाट यहां
कितना विशाल था
कितनी जलराशि थी यहां
अब यह एक क्षीण जल-रेखा बची
इसके तट पर
मिलें, इमारतें, फैक्ट्रियां
लोग नर्मदा के बचे-खुचे जल में यहां
अब पानी नहीं पीते
उसमें अपना मलिन मुख झांकते हैं
उनके मुखों पर
नदी के खोते जाने की कथा है
जिसे पढ़ती है नदी
और बदले हुए तटों को देखती है चुपचाप
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