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बदलोॅ आपनोॅ चाल / मनीष कुमार गुंज

Kavita Kosh से
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बाबू कहै सुनें रे नूनू बदलें आपनोॅ चाल
दारू-पुड़िया के फेरा में सड़तौं अतड़ी गाल।
सुनें रे नूनू बदलें आपनोॅ चाल।

सुशासन के राज चलै छै, होय रहलै विकास
गरीब-गुरूवा के दिन फिरलै, मन में छै विश्वास
सुनें रे नूनू बदलें आपनोॅ चाल।

गाँव-गाँव में स्कूल खुललै, सड़क-पूल भरमार
घर-घर बिजली-पानी चललै, नै पड़बै बीमार
सुनें रे नूनू बदलें आपनोॅ चाल।

जात-धरम के झगड़ा में कोय अदालत कोय जेल
भेद-भाव सब दूर करी के खूब बढैबै मेल
पढ़ी-लिखी विद्वान बनी जो घर-घर बाँटें ज्ञान
तोरा चलतें हमरोॅ बढतै गाँव भरी में मान।
सुनें रे नूनू बदलें आपनोॅ चाल।