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बदलो / पूजा खिल्लन
Kavita Kosh से
दुनिया नहीं उसे देखने का नज़रिया
बदल जाता है हर बार
जैसे शब्द पहले तत्सम था, अब तदभव है
कविता पहले तुक थी
अब लय है
और जितनी तेज़ी से बदल रही है दुनिया
उतनी ही तेज़ी से बदल रहा है अर्थ
और उसके प्रतिमान
लेखक नही पाठक जिसकी कुंजी है
अगर तुम पाठक हो तो बदलो,
चूँकि परिवर्तन अब अकेले
मेरे जैसे किसी लेखक के बस की बात नही।